उत्तराखंड

बाबा केदार से आस, क्या निशंक या तीरथ का होगा पुनर्वास!

दोनों पूर्व सीएम के नामों की भी है चर्चा, फिलहाल हाशिये पर हैं दोनों नेता

जनादेश एक्सप्रेस/देहरादून
ये चर्चाएं हालांकि बहुत मजबूत नहीं हैं, लेकिन फिर भी हैं कि भाजपा केदारनाथ उपचुनाव में अपने दो पूर्व सीएम डा रमेश पोखरियाल निशंक या फिर तीरथ सिह रावत पर भी दांव खेल सकती है। भाजपा के ये दोनों दिग्गज फिलहाल तो राजनीतिक तौर पर हाशिये पर हैं, जिनके पुनर्वास के लिए समय-समय पर तमाम तरह की अटकलें लगाई जाती रही हैं। ताजी चर्चाएं केदारनाथ सीट से जोड़कर की जा रही हैं।
इन स्थितियों के बीच, सबसे बड़ा सवाल ये ही है कि इनमें से कोई नेता यदि विधायक बनता है, तो उसके राजनीतिक कद के हिसाब से उसका समायोजन सरकार में किस तरह से हो पाएगा। वैसे, यह मोदी-शाह के दौर की भाजपा है, जहां कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। मसलन, महाराष्ट में एक जमाने में देवेंद्र फडणवीस सीएम थे, तो वर्तमान में डिप्टी सीएम है। ऐसे में निशंक या फिर तीरथ को टिकट मिलने की संभावना देख रहे राजनीतिक पंडित मानते हैं कि दोनों दिग्गजों के नामों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। खास तौर पर तब, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ से कददावर नेता डा हरक सिह रावत का नाम भी टिकट के लिए उछल रहा हो।
दरअसल, चाहे निशंक हो या फिर तीरथ, दोनों का उत्तराखंड की राजनीति में बड़ा कद रहा है। दोनों पूर्व सीएम रहे हैं। इसके अलावा, निशंक का यूपी से लेकर उत्तराखंड के जमाने में कई विभागों के मंत्री रहते हुए भी केदारनाथ से जुड़ाव रहा है। दूसरी तरफ, तीरथ सिंह रावत पिछली लोकसभा में जिस गढ़वाल सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, केदारनाथ क्षेत्र उसी का हिस्सा है। इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दोनों का टिकट काटकर उन्हें घर बैठा दिया। तब से अपने-अपने स्तर पर दोनों ही नेता राजनीति में फिर से स्थापित होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
निशंक या तीरथ को टिकट न मिलने की संभावना देखने वाले राजनीति के जानकारों का कहना है कि जीतने के बाद इतने बडे़ स्तर के नेता को सरकार में समायोजित करना मुश्किल होगा। दोनों ही नेता सीएम रह चुके हैं, ऐसे में वह सिर्फ विधायक बतौर काम कैसे कर सकते हैं। यदि हाईकमान के निर्देश पर वह सिर्फ विधायक बने रहते हैं, तो फिर इस बात की क्या गारंटी है कि वह एक अलग पाॅवर सेंटर बनाने के लिए सक्रिय नहीं होंगे और सरकार के सामने असहज स्थिति पैदा नहीं करेंगे। वैसे, यह भी कहा जा रहा है कि केदारनाथ सीट पर जिस तरह से स्थानीय भाजपा नेताओं में मारामारी मची हुई है और गुटबाजी का खतरा बन रहा है, उसमें पार्टी यदि किसी हैवीवेट कैंडीडेट को सामने ले आती है, तो इससे जीत की राह आसान हो जाएगी। बहरहाल, दोनों दिग्गज नेताओं को टिकट के मामले में शीर्ष नेतृत्व की क्या राय है, यह आने वाले दिनों में ही साफ हो पाएगी। उत्तराखंड भाजपा के नेता इस बारे में कुछ भी साफ करने की स्थिति में नहीं हैं।

 

Janadesh Express

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