केदारनाथ उपचुनावः घर की कलह से ना भाजपा अछूती, ना कांग्रेस
एक-दूसरे से निबटने से पहले फिलहाल तो खुद के झगड़े निबटाने पड़ रहे भारी

जनादेश एक्सपे्रस/देहरादून
केदारनाथ उपचुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी अब भी अबूझ पहेली बने हुए हैं। प्रत्याशियों की तलाश के लिए दलों की अंदरूनी प्रक्रिया ने भाजपा और कांग्रेस के भीतर कलह जरूर पैदा कर दी है। हाल ये है कि चुनाव में एक-दूसरे से निबटना तो जब होगा, तब होगा, फिलहाल दोनों ही दल अपनी घरेलू कलह से निबटने में जुटे हैं। यह भी तय माना जा रहा है कि प्रत्याशी का चेहरा सामने आते ही अंदरूनी कलह का एक नया दौर दोनों जगह शुरू हा जाएगा।
ज्यादा दिलचस्प बात कांग्रेस से जुड़ी है। यहां पर पहली बार अलग सी नजीर पेश हुई है। पर्यवेक्षकों की टीम ने प्रत्याशियों के नामों का पैनल और संबंधित रिपोर्ट सीधे प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा के पास भेज दी है। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा नजरअंदाज किए जाने से व्यथित हैं। माहरा कह रहे हैं कि कायदा तो यही है कि पर्यवेक्षक प्रदेश कांग्रेस कमेटी को रिपोर्ट सौंपे और प्रदेश कमेटी के स्तर से यह रिपोर्ट प्रभारी तक पहुंचे। इसके विपरीत, मुख्य पर्यवेक्षक गणेश गोदियाल के तर्क कम दिलचस्प नहीं है। गोदियाल कह रहे हैं कि पर्यवेक्षकों की नियुक्ति प्रभारी ने की है, तो रिपोर्ट उन्हें नही ंतो किसे सौंपी जाएगी।
इन स्थितियों के बीच, कल यानी 24 अक्टूबर को दिल्ली में प्रत्याशी चयन के संबंध में उच्चस्तरीय बैठक है। छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले करण माहरा और गणेश गोदियाल की मुलाकात इसी बैठक में होगी। समझा जा सकता है कि प्रत्याशी चयन से पहले कांग्रेस का आलाकमान भी किस तरह की जोर आजमाइश देखेगा। गोदियाल खुले तौर पर केदारनाथ सीट पर पूर्व विधायक मनोज रावत के पक्ष में खडे़ हैं, जबकि करण माहरा किसी और को प्रत्याशी चाहते हैं।
अब बात सत्तारूढ़ भाजपा की। प्रत्याशी चयन को लेकर उसके घर में ज्यादा कलह मची हुई है। केदारनाथ सीट पर दो बार निर्दलीय बतौर चुनाव लड़कर कुलदीप रावत ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। उन्होंने दोनों बार मजबूती से चुनाव लड़ा और दिखलाया कि जनाधार होने पर निर्दलीय भी किस तरह से चुनाव लड़ सकता है। अब वह भाजपा में हैं और टिकट के दावेदार हैं। टिकट न मिलने पर बगावत करने का इशारा भी कर रहे हैं। ऐसे में पार्टी मुश्किल में है। दिवंगत सिटिंग विधायक शैलारानी रावत की पुत्री ऐश्वर्या की चुनावी तैयारी अपने स्तर पर काफी आगे बढ़ी हुई हैं। उन्हें टिकट का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। मगर किन्हीं स्थितियों में यदि उनका टिकट कटता है, तो उनके संभावित रूख को भांपकर भी भाजपा सहज नहीं है। इन स्थितियों में भाजपा व कांग्रेस दोनों के ही सामने गुटबाजी और कलह को रोकने की चुनौती है। यह चुनौती कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नामांकन प्रक्रिया शुरू हुए दो दिन हो गए हैं और प्रत्याशियों के नाम पहेली बने हुए हैं।