कांग्रेस की सियासत के सबसे बड़े धुरंधर, हरदा ही सिकंदर
हरिद्वार के बाद केदारनाथ में भी हरीश रावत ने रोकी धुर विरोधी हरक सिंह रावत की राह

जनादेश एक्सप्रेस/देहरादून
जो जीता वो ही सिकंदर। केदारनाथ उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट के लिए मची मारामारी में हरीश रावत ही सिकंदर रहे हैं। ये भी साबित हो गया कि कांगे्रस के भीतर उनसे बड़ा धुरंधर और कोई नहीं है। यह हरीश रावत ही कर सकते थे कि एक तरफ अपने चहेते मनोज रावत को टिकट दिला दिया। दूसरी तरफ, अपने धुर विरोधी डा हरक सिंह रावत का पत्ता भी कटवा दिया।
वैसे, छह महीने के भीतर यह दूसरा मौका है, जबकि हरदा के सियासी चातुर्य के आगे डा हरक सिह रावत की कोशिशों पर पानी फिरा है। हरक सिंह रावत केदारनाथ सीट पर कांग्रेस का टिकट चाहते थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। ऐसा ही, कुछ लोकसभा चुनाव के दौरान भी हो चुका है। हरिद्वार संसदीय सीट पर हरक सिंह रावत ने टिकट के लिए जोर लगाया था, लेकिन हरीश रावत के आगे टिक नहीं पाए। हाईकमान के आगे हरदा ने अपनी ताकत दिखाई, तो हरक सिंह रावत पीछे हो गए और टिकट हरीश रावत के बेटे आनंद रावत की झोली में आ गिरा। यह बात अलग है कि हरिद्वार सीट पर भाजपा के त्रिवेंद्र ंिसह रावत को जीत नसीब हुई।
दरअसल, जब-जब हरक सिंह रावत कांग्रेस में रहे, तब-तब उनकी हरीश रावत के साथ कभी पटरी नहीं बैठ पाई। वर्ष 2016 में तो यह खाई इतनी चैड़ी हो गई, कि वह कब तक पट पाएगी, यह कोई नहीं जानता। यह सब जानते हैं कि वर्ष 2016 में हरीश रावत की सरकार को बगावत के जरिये गिराने वाले नेताओं में हरक सिह रावत प्रमुख तौर पर शामिल थे। तब से हरक सिंह और हरीश रावत में छत्तीस का आंकड़ा है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले हरदा के ना चाहते हुए भी हरक सिंह रावत भाजपा से कांग्रेस में शामिल हो गए। हरक कांगे्रसी जरूर हो गए हैं, लेकिन हरदा और उनके रिश्तों में अदावत आज भी शिद्दत से मौजूद है। कांग्रेस में अपना कद बड़ा करने की कोशिश कर रहे हरक को हर कदम पर अब हरदा के प्रहार झेलने पड़ रहे हैं।
हरीश रावत शुरू से केदारनाथ सीट पर मनोज रावत के पक्ष में खडे़ रहे। मुख्य पर्यवेक्षक बतौर जब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को नियुक्त किया गया, तो यह तय हो गया था कि मनोज रावत की संभावनाएं बढ़ गई है। गोदियाल को हरदा के कैंप का ही माना जाता है। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा, प्रीतम सिंह जैसे नेता मनोज रावत के खिलाफ थे। इन स्थितियों के बीच, हरक सिह रावत की दावेदारी मजबूती से उभरी। हरक भी पिछले सात वर्षों से चुनावी राजनीति से दूर हैं और फिलहाल राजनीति में बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है, इसलिए वह भी चुनाव लड़ने के इच्छुक थे, लेकिन हरीश रावत की व्यूह रचना को कोई भेद नहीं पाया। अब यदि केदारनाथ सीट पर मनोज रावत कुछ उलटफेर करते हैं, तो उनका खुद का सियासी कद तो बढे़गा ही, हरदा को भी पार्टी के भीतर और मजबूती मिल जाएगी।
गोदियाल भी थे हरक से खफा, नहीं निभायी थी वफा
-कांग्रेस के मुख्य पर्यवेक्षक गणेश गोदियाल भी हरक सिह रावत से खफा थे। दरअसल, इस बार के लोकसभा चुनाव में गढ़वाल संसदीय सीट से कांग्रेस ने गणेश गोदियाल को प्रत्याशी बनाया था। गोदियाल ने भाजपा के अनिल बलूनी के खिलाफ बेहद दमदारी से चुनाव लड़ा था, लेकिन इस दौरान एक भी दिन प्रचार के लिए हरक सिंह रावत सामने नहीं आए। उस वक्त हरक सिंह रावत ईडी व सीबीआई की जांच का सामना कर रहे थे। और तो और लैंसडौन सीट से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ चंुकी उनकी पुत्रवधु अनुकृति गुसाईं और करीबी लक्ष्मी राणा ने भाजपा के पक्ष में मतदान की अपील की थी। इससे गोदियाल आहत रहे। हरक सिंह का टिकट कटवाने में उन्होंने हरदा का बखूबी साथ दिया।