उत्तराखंड

केदारनाथ में भाजपा की आशा, परंपरा से किनारा, अपनों का सहारा

आशा नौटियाल का प्रत्याशी बतौर चयन भाजपा के भीतर बदलती हवा का कर रहा इशारा

 

विपिन बनियाल
आखिरकार भाजपा ने केदारनाथ उपचुनाव के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिया। दो बार की विधायक आशा नौटियाल अब केदारनाथ में भाजपा की जीत की आशा हैं। प्रत्याशी चयन में मोटे तौर पर दो बातें उभरी हैं। एक, भाजपा का भरोसा अपने पुराने कार्यकर्ताओं पर लौट रहा है। दो, सहानुभूति से जुड़ा परंपरागत कार्ड यदि जीत की गारंटी नहीं है, तो उससे किनारा करने में भाजपा को परहेज नहीं है। भाजपा की इस बदली सोच का केदारनाथ उपचुनाव में उसे कितना फायदा मिलता है, यह बात अब कसौटी पर कसने के लिए तैयार है।
कांग्रेस प्रत्याशी बतौर मनोज रावत के नाम का ऐलान होने के कुछ घंटों बाद ही भाजपा ने भी अपने पत्ते खोल दिए। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में प्रत्याशी चयन ज्यादा पेचीदा मामला था। वजह, यहां पर कई तरह के विकल्प पार्टी के पास थे। दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की पुत्री ऐश्वर्या रावत को टिकट दें या ना दें, यह सवाल बड़ा था। क्योकि इससे पहले इन स्थितियों में हुए चुनाव में पार्टी ने दिवंगत विधायक के परिजन को ही चुनाव में उतारा है। अतीत के ये तथ्य नजरअंदाज करने आसान नहीं थे, लेकिन भाजपा ने इससे किनारा करने का साहस दिखाया।
कुछ समय पहले भाजपा में शामिल हुए कुलदीप रावत को नकारना भी भाजपा के लिए आसान निर्णय नहीं था। वजह, विधानसभा के दो चुनाव में निर्दलीय बतौर मैदान में उतरे कुलदीप रावत ने जिस तरह से अपनी ताकत दिखाई है, वह चैंकाने वाली रही है। वर्ष 2022 के चुनाव में तो वह दूसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। मगर बद्रीनाथ हो या मंगलौर उपचुनाव, भाजपा ने जिस तरह से गैर भाजपाई पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी मैदान में उतारकर मुंह की खाई, वह पार्टी नेतृत्व के जेहन में रही। लिहाजा कुलदीप टिकट से चूक गए।
केदारनाथ पुनर्निर्माण के हीरो रहे कर्नल अजय कोठियाल की गैरभाजपाई पृष्ठभूमि और स्थानीय न होने का तथ्य मजबूती से जुड़ा रहा। इसलिए उनकी दावेदारी मजबूती से आगे नहीं बढ़ पाई। चर्चाओं में पूर्व सीएम डा रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत के नाम भी रहे, लेकिन उन्हें अप्रत्याशित स्थितियो में ही टिकट की संभावना थी। यह अप्रत्याशित स्थिति यह हो सकती थी कि कांग्रेस से किसी बडे नेता को टिकट देने का निर्णय यदि किया जाता।
जहां तक आशा नौटियाल को प्रत्याशी घोषित करने का सवाल है, वह वर्ष 2002 व 2007 में केदारनाथ की विधायक रह चुकी हैं। वर्तमान में भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष है। उनका राजनीतिक कैरियर बेदाग रहा है। हालांकि पिछले चुनाव में टिकट न मिलने पर उन्होंने बागी बतौर किस्मत आजमाई थी, लेकिन हार गई थीं। आशा को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसके लिए पुराने लोग कितने महत्वपूर्ण है। भाजपा जानती है कि प्रतिष्ठा से जुडे़ इस चुनाव में भाजपा कार्यकर्ताओं की ताकत ही जीत का रास्ता साफ कर सकती है। भले ही उसके पास सरकार हो, मैनेजमेंट हो। इन स्थितियों के बीच, अब ऐश्वर्या रावत और कुलदीप रावत को चुनाव मैदान में निर्दलीय बतौर उतरने से रोकना भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।

Janadesh Express

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