उत्तराखंड

ऐसी मनी बग्वाल, कि अब कभी ना देख पाएंगे इगास

मार्चूला बस दुर्घटना से हर कोई स्तब्ध, गम, गुस्सा और कई सारे सवाल

विपिन बनियाल

-पहाड़ ने बग्वाल (दीपावली) के उत्सवी माहौल से जिन खुशियों को इस बार समेटा था, वह मार्चूला में बिखर गई हैं। पहाड़ मेें गम है। गुस्सा है। कई सारे सवाल हैं। भावनाओं का उफान है। दीपावली की खुशियां तो अभी लंबी चलनी थी। पहाड़ में दीपावली कोई एक दिन का मामला नहीं है। छोटी दीपावली यहां बग्वाल है। इसके 11 दिन बाद आती है बूढ़ी दीपावली, जिसे इगास कहते हैं। प्रकाश पर्व की एक श्रृंखला जब पूरी होती है, तो तब कहीं जाकर पहाड़ की दीपावली मनती है। मगर इस श्रृंखला के बीच मार्चूला में 36 अभागे यात्रियों का काल का ग्रास बन जाता, स्तब्धकारी है। अंदर तक हिलाकर रख देने वाला है। बस दुर्घटना का शिकार हुए इन 36 अभागे यात्रियों ने अभी कुछ दिन पहले ही तो बड़ी धूमधाम से बग्वाल मनाई थी। इंतजार अब इगास का था, लेकिन इससे पहले मानो मौत उनका इंतजार कर रही थी। इनमें से कौन जानता था कि बग्वाल तो मना ली, इगास कभी नहीं देख पाएंगे।
पहाड़ मेें सड़क दुर्घटनाओं का इतिहास पुराना है। ऐसे मौकों पर राहत और बचाव कार्य के दौरान लाचारगी की दास्तान भी पुरानी है। फिर चाहे किसी की भी सरकार क्यों न हो। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने परिवहन विभाग के दो एआरटीओ प्रवर्तन को निलंबित कर सख्त रूख दिखाया है। मगर यह भी सच्चाई है कि पटरी से उतर चुके सरकारी सिस्टम को दुरूस्त करने के लिए यह नाकाफी है। आखिर यह किसी से छिपा थोडे़ है कि पहाड़ के ब्रांच रूटों पर क्षमता से अधिक सवारी ढोने का चलन कितना प्रभावी और पुराना है। ऐसा चलन कि कब कोई दुर्घटना कितने लोगों के प्राण हर ले, कहा नहीं जा सकता। इस पर नकेल कसने के लिए प्रभावी तंत्र विकसित नहीं हो पाया है। लोगों की जान पर संकट के बादल लगातार मंडराते ही दिखते हैं।
हमेशा की तरह मार्चूला में भी सरकारी सिस्टम की लापरवाही और बेबसी की मिली-जुली तस्वीर सामने आई है। परिवहन विभाग, पुलिस-प्रशासन और सरकार की और भी जिम्मेदार संस्थाएं कटघरे में हैं। ओवर लोडेड होकर एक बस पौड़ी जिले की सीमाओं से होकर अल्मोड़ा जिले में प्रवेश कर लेती है और दो-दो जिलों का पुलिस, प्रशासन, परिवहन विभाग का तंत्र आंखों में पट्टी बांधकर सोया रहता है। लापरवाही का विषय जिलों से शुरू होकर शासन और सरकार तक भी जाता है, जहां पर माॅनीटरिंग के नाम पर कोई हलचल होती दिखती नहीं है।
इन स्थितियों के बीच, एसडीआरएफ की तत्परता सुकून देती है। घायलों को हेलीकाप्टर से एम्स ़ऋषिकेश व सुशीला तिवारी हाॅस्पिटल हल्द्वानी पहुंचाने के प्रयास आश्वस्त करते हैं, लेकिन जिन घरों के चिराग इस दुर्घटना में बुझ गए हैं, उन्हें सांत्वना देने के लिए किसी के पास कोई उपाय हो, तो वह सामने आकर बताए। कौन यह आश्वस्त कर सकता है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा। आपदा पर भले ही किसी का जोर नहीं, पर बेगुनाहों का खून इतना भी सस्ता तो नहीं है। जान-माल का यह नुकसान छोटा नहीं है। कहा जा सकता है कि दुर्घटना कोई नहीं रोक सकता, लेकिन सरकारी सिस्टम यदि चुस्त दुरूस्त होता, तो मौत का आंकड़ा इतना बड़ा नहीं होता। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस करीब है। यह संकल्प तो लेना ही होगा कि सिस्टम की लापरवाही से कोई भी इगास मनाने से वंचित न होने पाए।

Janadesh Express

Related Articles

Back to top button