राजनीति

गुजरात लॉबी की रडार पर योगी आदित्यनाथ.

” योगी को घरने की तैयारी मे अमित शाह, पहले उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या, ब्रजेश पाठक अब ओमप्रकाश राजभर व दारा सिंह, योगी सरकार को कैबिनेट मे घेरने की तैयारी वह भी ऐसे वक़्त जब 2024 की फाइनल तैयारी है.”
अभय कुमार की रिपोर्ट –

तीन राज्यों में मिली जीत के बाद जैसे भाजपा के बड़े शहरों को दरकिनार कर दिया गया और वैसे लोगों को मुख्यमंत्री बनाया गया जो पीएमओ के द्वारा बनाए गए दिशा निर्देश पर काम करें. विगत कुछ वर्षों से भाजपा के अंदर हो रही उथल-पुथल व बड़े दिग्गजों को साइड लाइन करने का तारिक भाजपा के अंदर के अंतरकलह को दर्शाता है. मध्य प्रदेश के बड़े चेहरे शिवराज सिंह चौहान को, राजस्थान का बड़ा चेहरा वसुंधरा राजे सिंधिया, छत्तीसगढ़ के सीएम का सत्ता से किनारे होना, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को पार्टी से साइड लाइन करना , इतना ही नहीं नितिन गडकरी को केंद्रीय संसदीय बोर्ड की समिति से भी बाहर का रास्ता दिखाना यह सब आने वाले समय में अगली रणनीति का घोतक प्रतीक होता है, देश की राजनीति बिना उत्तर प्रदेश को जीते नहीं हो सकती है, सूत्रों की माने तो उत्तर प्रदेश की कमान एक पीठ के पीठाधीश्वर को दी गई है, जो शुरू से ही अपने तरीके से शासन चलाना जानता है, सुनने में तो यह भी आया है, की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राज्य की सरकार अपने तरीके से चलते हैं, कई बार तो उन्होंने पीएमओ और अमित शाह तक की बात को टाला है, मुख्य सचिव डीजीपी नियुक्तियों पर एक नजर डाला जाए तो गृह मंत्रालय और मुख्यमंत्री का टकराव जग जाहिर हुआ था, ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के प्रबल दावेदार अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देखा जा रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बढ़ती लोकप्रियता गुजरात लॉबी को पसंद नहीं आ रही है, इसीलिए गुजरात लॉबी अपने पसंद से शतरंज के मोहरों की तरह राज्यों में अपने सिपाह सलाहकार को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित कर रही है, पर वहीं दूसरी तरफ सूत्रों की माने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ योगी आदित्यनाथ यह पक्ष में दिखाई दे रहा है, अंदर खाने कुछ भी चल रहा हो लेकिन पूर्व में घटित हुई घटनाओं पर ध्यान दिया जाए, लोकसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव के बाद, उत्तर प्रदेश में भी कुछ बड़ा होने के आसार दिख रहे हैं, अब क्या योगी आदित्यनाथ के हाथ से उत्तर प्रदेश की कमान लेकर उन्हें पुनः लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए बोल दिया जाए और दिल्ली का रुख कर दिया जाए अथवा कुछ और परिवर्तन हो या तो आने वाला समय बताएगा लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी कुछ ना कुछ तो संभव होना है, और यह चर्चा इसलिए की जा रही है की उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जो अमित शाह के बेहद करीबी माने जाते हैं, इतना ही नहीं उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने तो योगी आदित्यनाथ के खिलाफ शुरू से ही मोर्चा खोल रखा है, सीएम के बुलाने पर कैबिनेट की महत्वपूर्ण बैठकों में भी केशव प्रसाद मौर्य अनुपस्थित रहते हैं, यहां तक की केशव प्रसाद मौर्य की उपस्थिति विधानसभा के अंदर भी कम ही रही है, ऐसे में चुनाव के पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिनके पास लोगों से मिलने के लिए समय नहीं, वह घंटे केशव प्रसाद मौर्य को देते हैं और विचार मंथन होता है, साथ-साथ केशव प्रसाद मौर्य का विचार मंथन अमित शाह के साथ भी होता है, कहीं ना कहींउत्तर प्रदेश में बड़े राजनीतिक उथल-पुथल की ओर इशारा करती है, पूर्वांचल की एक बड़ी लॉबी शुरू से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आने वाले समय में प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाह रही है. और यह सब संविधान में संशोधन की व्यवस्था को लेकर के देखा जा रहा है, भारतीय संविधान मेंपूरी तरह से संशोधन के लिएकेंद्र सरकार को कम से कम 25 राज्यों का सपोर्ट चाहिए और इसके लिए कम से कम 25 राज्यों में उनके मुख्यमंत्री होना जरूरी है. और यही करने के लिए अपने हिसाब से शतरंज की मोहरी बिछाई जा रही हैं. पर क्या भाजपा के दिग्गज नेताओं से किनारा करके भाजपा का भविष्य सुरक्षित रहेगा.पूर्व राजीव प्रताप रूढ़ी, मुख्तार अब्बास नकवी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी जैसे सभी चेहरों के साथ-साथ रविशंकर प्रसाद जो कभी नरेंद्र मोदी के करीबी हुआ करते थे उन्हें भी पार्टी से साइड लाइन कर दिया गया है. लालकृष्ण आडवाणी जिन्हें भाजपा से उचित सम्मान मिलना चाहिए चर्चाएं राष्ट्रपति बनने की थी परंतु वह नहीं हो सका लालकृष्ण आडवाणी चुनाव तो लड़े पर शपथ ग्रहण नहीं कर पाए. क्या इस बार भी राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी को टिकट या फिर चुनाव जीतने के बाद उन्हें शपथ ग्रहण नहीं करने दिया जाएगा. पर जो भी होगा वह भाजपा के अंदर एक बड़े अंतकलह की तरफ इसारा करेगा.

Janadesh Express

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