लालू की तरह पत्नी को CM बनाएंगे केजरीवाल या तोड़ेंगे रीजनल पार्टियों का रिवाज ?
कौन होगा दिल्ली मुख्यमंत्री पद का दावेदार

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है. ऐसे में अब दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? सीएम पद की रेस में कौन सा नाम सबसे आगे चल रहा है?
जनादेश एक्सप्रेस /नई दिल्ली –
दिल्ली के कथित शराब घोटाले के आरोप में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 177 दिन बाद जेल से रिहा हुए. वहीं, रिहाई के बाद रविवार को पहली बार पार्टी के नए कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. इस दौरान सीएम केजरीवाल ने अगले दो दिनों में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा करके दिल्ली की राजनीति को बड़ी हवा दे दी है. उनके इस्तीफा देने की घोषणा के बाद अब इस पद की जिम्मेदारी कौन संभालेगा, इसको लेकर राजनीति गरमा गई है. वहीं, संभावितों सीएम पद की रेस में पत्नी सुनीता केजरीवाल, मंत्री आतिशी और सौरभ भारद्वाज का नाम सबसे ऊपर आ रहा है.
चर्चा यह भी है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल ये जिम्मेदारी परिवार के किसी सदस्य को सौंपेंगे. क्योंकि, उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल का नाम लोकसभा चुनाव के दौरान से ही चर्चाओं में है. जब सीएम केजरीवाल चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत पर बाहर आए थे. उस समय से ही लगातार सुनीता केजरीवाल की सीएम पद की दावेदारी की चर्चा हो रही है. अब जब सीएम ने इस्तीफे की घोषणा कर दी है तो उनकी जगह पर कौन मुख्यमंत्री होगा. इसके नाम को लेकर देश की दूसरी राजनीतिक क्षेत्रीय पार्टियों की भी चर्चा आम हो गई है. क्योंकि यह दल अक्सर परिवार के भीतर से ही यह जिम्मेदारी सौंपते आए हैं. बिहार से लेकर झारखंड और उत्तर प्रदेश व दूसरे राज्य इसके गवाह हैं.
लालू यादव ने राबड़ी तो शिबू सोरेन ने हेमंत को सौंपी थी विरासत: लालू यादव ने चारा घोटाले में फंसने के बाद और जेल जाने के बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम पद की कमान सौंपी थी. इसी तरह पूर्व सीएम शिबू सोरेन ने भी झारखंड की कमान किसी और की बजाय बेटे हेमंत सोरेन को सौंप दी थी.
मुलायम सिंह ने अखिलेश को सौंपी थी विरासत: बात अगर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की करें तो यहां पर भी मुलायम सिंह यादव को किसी और पर भरोसा नहीं था. उन्होंने सत्ता की बागडोर अपने बेटे अखिलेश यादव को राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए सौंपना ज्यादा सुरक्षित माना. इस तरह के उदाहरण अब दिल्ली की राजनीति में फिट होंगे या नहीं, इसको लेकर भी चर्चा अलग से शुरू हो गई है.
परिवार की बजाय बाहरी सदस्य को सौंप सकते हैं जिम्मेदारी: दरअसल, दिल्ली विधानसभा के चुनाव अगले साल फरवरी में संभावित है. ऐसे में केजरीवाल विपक्ष के आरोपों से बचने के लिए भी इस पद की कमान कुछ समय के लिए किसी पारिवारिक सदस्य की बजाय बाहरी सदस्य को सौंप सकते हैं. अगर वह इसकी कमान अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को सौंपते हैं तो उनको दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की तरह परिवारवाद का बढ़ावा देने जैसे आरोपों को लेकर विधानसभा चुनाव में विपक्ष के आरोपों से दो-चार होना पड़ सकता है. इससे बचने के लिए भी वह कोई और बड़ा फैसला इस दिशा में ले सकते हैं.
सीएम कुर्सी की दावेदारी में इन नामों पर बड़ी चर्चा: दिल्ली की सीएम की कुर्सी पर सबसे मजबूत नाम कैबिनेट मंत्री आतिशी का ही माना जा रहा है. आतिशी सीएम केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के भरोसे वाली मंत्री हैं. इसके अलावा पार्टी मंत्री कैलाश गहलोत, सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय और इमरान खान के नामों को भी सीएम दावेदारों के तौर पर विचार सकती है. संजय सिंह भी जमानत पर हैं, इसलिए पार्टी उनके नाम पर कम विचार कर रही है, जहां तक राघव चड्ढा के नाम का सवाल है तो पार्टी उनको दिल्ली की राजनीति में उतारकर एक बड़ा दांव खेल सकती है.
दिल्ली को फिलहाल एक केयरटेकर मुख्यमंत्री की जरूरत है जिसके लिए उनका सदन का सदस्य चुना जाना जरूरी नहीं है. इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव हो जाएंगे. ऐसे में आगामी चुनावों में पार्टी दलित वोट बैंक को देखते हुए दलित नेता के रूप में पार्टी कुलदीप कुमार, गिरीश सोनी के नाम पर भी विचार कर सकती है. पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम और राज कुमार आनंद पार्टी छोड़ गए हैं, इसलिए पार्टी दलिक वोट बैंक साधने का यहां बड़ा प्रयास कर सकती है.
सिसोदिया की दावेदारी को केजरीवाल ने ही किया खारिज: इस बीच देखा जाए तो सीएम पद की मजबूत दावेदारी में अरविंद केजरीवाल के बाद अगर कोई दूसरा बड़ा नाम माना जाता है तो उनमें पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हैं. सिसोदिया के भी जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद से यह चर्चा तेज हो गई थी कि वो अब पुराना पद संभालेंगे या फिर दिल्ली सीएम की कुर्सी. लेकिन आज सीएम ने अपने इस्तीफा देने के ऐलान के साथ यह भी साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री की रेस में मनीष सिसोदिया शामिल नहीं है. अब उनके नाम को लेकर सीएम केजरीवाल ने ही अपनी घोषणा में खुद विराम लगा दिया है.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह साफ कर दिया है कि जब तक जनता उनको और मनीष सिसोदिया को वोट देकर ईमानदारी का सर्टिफिकेट नहीं दे देती तब तक वह अपनी कुर्सी पर नहीं बैठेंगे. सीएम केजरीवाल ने कहा कि जनता जब तक फैसला नहीं सुना देती तब तक वह कुर्सी पर नहीं बैठेंगे. अगर जनता को लगता है कि केजरीवाल ईमानदार हैं तो वह मुझे वोट देंगे. आप लोगों की एक-एक वोट मेरी ईमानदारी का सर्टिफिकेट होगा. यदि आप लोग मुझे वोट देकर विजयी बनाएंगे तो ही मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठूंगा.” इस बयान ने यह भी साफ कर दिया कि अगली बार अगर सरकार आती है तो मुख्यमंत्री, अरविंद केजरीवाल ही बनेंगे.
संदीप दीक्षित ने सीएम इस्तीफा की घोषणा पर साधा निशाना, बताया ‘नाटक’: इस मामले पर कांग्रेस के दिग्गज नेता और दिल्ली से पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि वह सिर्फ नाटक कर रहे हैं. उनको बहुत समय पहले ही मुख्यमंत्री पद को छोड़ देना चाहिए था. उन्होंने कहा कि सीएम केजरीवाल भले ही किसी भी वजह से जेल गए हो, उनको अपना पद बहुत पहले छोड़ देना चाहिए था. लेकिन अब वह सिर्फ पद छोड़ने का नाटक कर रहे हैं. इतिहास में शायद पहली बार हुआ होगा कि जब कोई पद पर बैठा आदमी जेल जाए और उसे जमानत मिलने पर अदालत कहे आपको कोई फाइल छूनी नहीं है या फिर कुर्सी पर नहीं बैठना है. सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन के जेल से छूटने के मामले में इस तरह की कोई शर्तें नहीं लगाई थी जैसी सीएम केजरीवाल को जमानत देने के दौरान लगाई गई हैं.
जब फाइल साइन नहीं कर सकते तो सीएम रहने का फायदा क्या- सिरसा
बीजेपी के वरिष्ठ नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी केजरीवाल पर हमला बोलते हुए कहा कि वह दो दिन बाद इस्तीफा देंगे और जनता का फैसला आने पर फिर से मुख्यमंत्री बन जाएंगे. यह उनका कोई त्याग देना नहीं है. अदालत ने साफ कर दिया है कि वह ना तो मुख्यमंत्री कार्यालय जाएंगे और ना ही उसे कुर्सी पर बैठेंगे और कोई किसी फाइल पर साइन करेंगे. उधर, दिल्ली के कैबिनेट मंत्री कैलाश गहलोत का भी कहना है कि सीएम केजरीवाल के इस फैसले से वह सहमत हैं. उनको लोगों का प्यार, आशीर्वाद और सम्मान मिला है. इसको इस मामले को अब दिल्ली के लोगों पर छोड़ दिया गया है, जैसा वह करेंगे वह स्वीकार होगा.