उत्तराखंड

उत्तराखंड में निकाय और पंचायत चुनाव जल्द होने की सूरत नहीं

तकनीकी वजहों से लगेगा और समय, प्रशासक ही चलाएंगे शहर-गांवों में मिनी सरकार

 

जनादेश एक्सप्रेस/देहरादून
उत्तराखंड में मिनी सरकार अभी प्रशासक ही चलाएंगे। मिनी सरकार बोले तो नगर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत। इन स्थानीय निकायों में चुनाव होने की जल्द सूरत नजर नहीं आ रही है, भले ही चुनाव का शोर मचा हुआ हो और दावेदारों की सक्रियता बढ़ी हुई हो। दरअसल, तकनीकी वजहों से नगर निकाय और पंचायत चुनाव दोनों की ही डगर आसान नहीं हो पा रही है। सरकार पर न्यायालय से लेकर जनता तक का दबाव जरूर है, लेकिन फिर भी बात नहीं बन पा रही है। एक वजह, यह भी मानी जा रही है कि सरकार पहले केदारनाथ उपचुनाव की चुनौती से निबट लेना चाहती है। निकाय व पंचायत चुनाव का नंबर उसके बाद आएगा।
उत्तराखंड के नगर निकाय बोर्डों का कार्यकाल खत्म हुए एक वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है। तब से नगर निकायों में प्रशासकों का राज है। राज्य सरकार दो बार हाईकोर्ट में नगर निकाय चुनाव के लिए शपथपत्र दाखिल कर चुकी है, लेकिन हर बार कोई न कोई अड़चन पेश आ रही है। राज्य सरकार ने 10 नवंबर 24 को निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने का वायदा हाईकोर्ट में किया था, लेकिन इस बीच, निकायों में आरक्षण से संबंधित मसला विधानसभा की प्रवर समिति में चला गया। इस समिति को अपनी रिपोर्ट सितंबर में विधानसभा अध्यक्ष को देनी थी, लेकिन समिति ने एक महीन का अतिरिक्त समय मांग लिया है। साफ है कि नगर निकाय चुनाव में अभी और वक्त लगेगा।
वहीं, हरिद्वार जिले को छोड़कर शेष 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल इस वर्ष नवंबर आखिर में खत्म हो रहा है। यह तय है कि नवंबर के बाद त्रिस्तरीय पंचायतें भी प्रशासकों के अधीन होंगी। यह बात इसलिए दावे से कही जा रही है, क्योंकि पंचायत चुनाव का कार्यक्रम अभी तय ही नहीं किया गया है। सबसे बड़ी दिक्कत इस वजह से पेश आ रही है कि कई ग्रामीण क्षेत्रों को नगर निकायों में शामिल किया गया है। इसके अलावा, कई नगरीय क्षेत्र नगर निकायों से बाहर किए गए हैं। चमोली, चंपावत, नैनीताल और यूएस नगर जिलों मेें ऐसी स्थिति बनी है, इसलिए नए सिरे से यहां पर परिसीमन अनिवार्य हो गया है। यहां की मतदाता सूची को भी इसी अनुरूप संशोधित किया जाना होगा। ऐसे में पंचायत चुनाव में और वक्त लगना भी तयशुदा माना जा रहा है।

 

Janadesh Express

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