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देहरादून के चर्चित लूथरा नर्सिंग होम का अजीबो गरीब खेल

शहर के चर्चित लूथरा नर्सिंग होम मैं फिक्स है प्रसव का चार्ज , पर दुर्भाग्यपूर्ण की बार-बार बदल जाता है एक ही व्यक्ति का ब्लड ग्रुप

अभय कुमार की रिपोर्ट– 

शहर के चर्चित लूथरा नर्सिंग का अजीबो – गरीब कारनामें एक ही मरीज के कई बार बदलते है ब्लड ग्रुप दुर्भाग्य से किसी मरीज को ब्लड चढ़ानी पड़ती तो उस मरीज के साथ क्या होता आखिर किस ग्रुप का ब्लड चढ़ाया जाता और कुछ गलत हो जाता तो उसकी जबाबदेही किसकी होती

पीड़ित ज़ब ब्लड चढ़वाने गया तो पता चली ये बात, पीड़िता ने की उपभोक्ता फार्म जाने की तैयारी 

विदित हो की एक अखबार के प्रतिनिधि धीरेंद्र कुमार अपनी पत्नी रूबी शाह का इलाज देहरादून चकराता रोड स्थित लूथरा नर्सिंग होम में योगिता सिंह डॉक्टर की देखरेख में विगत 7 माह से इलाज करवा रहे थे  बताते चलें कि शुरुआती दौर में सब ठीक-ठाक चल आठवीं माह में  बच्चों का जन्म भी हुआ व्यक्ति ने भुगतान भी जमा करवाएं  और अस्पताल से डिस्चार्ज करवा कर  घर ले आया गौर करने वाली बात यह है जब उपरोक्त महिला का इलाज चल रहा था उसे दरमियां  कई टेस्ट कराए गए  जिसमें उसे महिला का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव  आया और उसके अनुसार इलाज चलता रहा दुर्भाग्य की बात यह है  जब वह महिला अस्पताल के अंदर गई तो उसे महिला का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था तो इस महिला का ब्लड ग्रुप अस्पताल से निकलते ही ओ पॉजिटिव हो जाता है गौर करने वाली बात यह है  की क्या अस्पताल प्रबंधन ने  उसे मरीज के रिपोर्ट को नहीं देखा या फिर पैसा बनाने की होड़ में  डिस्चार्ज पेपर का ब्लड ग्रुप चेंज कर दिया या फिर यूं कहा जाए  की नर्सिंग होम का स्लोगन यह बन गया  की दूसरा ब्लड ग्रुप लेकर आई और तीसरा ब्लड ग्रुप बनाकर वापस जाइए

उससे भी सोचने वाली बात यह है कि जिस डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है उसे भगवान ने भी मरीज को दिए जा रहे पेपर को ध्यान नहीं दिया  मरीज इस लूथरा नर्सिंग होम ब्लड ग्रुप चेक करने का रिपोर्ट बनवाया जिसमें पुनः बी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप की रिपोर्ट आई

अब सवाल उठता है मरीज को क्या आवश्यकता पड़ी की ब्लड ग्रुप  कि इस खामी पर ध्यान दें  अस्पताल से आने के बाद मरीज को खून की कमी हो गई थी सो उपरोक्त धीरेंद्र कुमार  ने अपनी पत्नी को ब्लड चढ़ाने के लिए डिस्चार्ज पेपर के अनुसार ओ पॉजिटिव ग्रुप  ब्लड की व्यवस्था कर दी थी  परंतु ब्लड चढ़ाने वाले डॉक्टर ने पुनः ब्लड चेक करने के लिए बोला जिस पर यह बात सामने आई इस पर धीरेंद्र कुमार द्वारा अस्पताल के उन कर्मचारियों से बात किया गया जो डिस्चार्ज के समय हॉस्पिटल चार्ज जमा करवाने के लिए बार-बार प्रेशर कर रहे थे इस बात पर उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया

अब देखना यह है कि अस्पताल प्रबंधन इस पर क्या कदम उठाता है या फिर मुख दर्शक बनकर  ऐसे ही अपना कारोबार दिन प्रतिदिन बढ़ते जाता है समय रहते  ऐसी परिस्थितियों पर अंकुश नहीं लगाई जाती कई मरीजों की जान जाने में तनिक भी देर नहीं लगेगी

 अब अंत में एक सवाल यह उठता है कि ऐसे प्रतिष्ठित  डॉ व संस्थान का यह हाल है  शहर के अंदर मौजूद नीम हकीम खतरे जान के द्वारा किस प्रकार का मृत किया जा रहा है इस पर हमारी टीम कल  राज्य के स्वास्थ्य सचिव  और जिले के स्वास्थ्य पदाधिकारी से भी उनके बयान को लेगी व इसके के साथ-साथ अस्पताल प्रबंधन के निदेशक से भी इसकी जानकारी ली जाएगी.

Janadesh Express

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