केदारनाथ की जमीन वही, कर्नल के लिए चुनौती नई
आपदा के बाद केदारपुरी को संवारने वाले हीरो के सामने इस बार सियासी चक्रव्यूह

विपिन बनियाल
-वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा को जरा याद कीजिए। किस तरह से केदार पुरी आपदा से तहस-नहस हो गई थी। केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण की चुनौती का सामना करने से हर कोई हिचकिचा रहा था। हरीश रावत सरकार उलझन में थी कि किस तरह केदारनाथ के हालात संवारे। ऐसे समय में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान यानी निम के प्राचार्य कर्नल अजय कोठियाल और उनकी टीम ने केदार घाटी में मोर्चा संभाला। एकदम विपरीत परिस्थितियों में काम किया और केदारनाथ की सूरत संवार दी। उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश ने केदारनाथ पुननिर्माण के आलोक में कर्नल का नायकत्व देखा। तब से लेकर अब तक गंगा-यमुना में काफी पानी बह गया है। कर्नल अजय कोठियाल अब सियासी अवतार में हैं। केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के टिकट के सबसे प्रमुख दावेदार हैं। केदारनाथ की जमीन वही है, लेकिन कर्नल के लिए इस बार चुनौती नई है।
उत्तराखंड के बाद विधानसभा के जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उसमें से केदारनाथ उपचुनाव का मामला सबसे खास माना जा रहा है। अयोध्या, बद्रीनाथ के चुनाव हारने के बाद हिंदुओं के तीर्थ स्थल पर बनी केदारनाथ सीट में हार-जीत की सियासी दलों के लिए अहमियत एकदम साफ है। इसके अलावा, केंद्र की सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से केदारनाथ से जुडे़ हैं, उससे यह चुनाव एक छोटे राज्य का छोटा चुनाव नहीं रह गया है। इन स्थितियों के बीच, भाजपा यहां पर एक सशक्त और जाने पहचाने उम्मीदवार के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है।
कर्नल अजय कोठियाल आम आदमी पार्टी से होते हुए भाजपा में आए हैं। वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव कर्नल कोठियाल ने आप के टिकट पर गंगोत्री सीट से लड़ा था। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने उन्हें उत्तराखंड में पार्टी का सीएम कैंडिडेट घोषित किया था, लेकिन वह चुनाव हार गए थे, जबकि इस क्षेत्र में निम के प्राचार्य के रूप में कर्नल कोठियाल ने कई उल्लेखनीय कार्य किए थे। अब अपनी एक ओर कर्मस्थली केदारनाथ के उपचुनाव में कर्नल कोठियाल भाजपा के टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। केदारनाथ का पूरा क्षेत्र कर्नल कोठियाल के शानदार कार्य का गवाह है। उनके काम की उपलब्धि उनके सियासी सफर में कितनी मददगार साबित हो पाती है, ये देखने वाली बात होगी। फिलहाल, तो वह टिकट के लिए भाजपा के तमाम मजबूत नेताओं के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा में फंसे हुए हैं। केदारनाथ का उपचुनाव भाजपा के लिए किसी युद्ध से कम नहीं है। इस सियासी युद्ध में कर्नल का पार्टी किस तरह स इस्तेमाल करती है, इस पर सबकी निगाहें होंगी।