कौन सा फैक्टर होगा कारगर, जो आसान करे भाजपा की डगर
केदारनाथ उपचुनाव में सहानुभूति कार्ड पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं, भाजपा उलझन में

विपिन बनियाल
-उत्तराखंड राज्य बनने के बाद के उपचुनावों का इतिहास खंगाल लें। खास तौर पर ऐसे चुनाव, जो कि सिटिंग विधायक के निधन के बाद की स्थिति में हुए। ज्यादातर में भाजपा ने दिवंगत विधायक के परिजन को ही चुनाव मैदान में उतारा है। मगर केदारनाथ उपचुनाव के मामले में सहानुभूति के फैक्टर पर भाजपा अभी बहुत ज्यादा यकीन नहीं कर पा रही है। इसलिए दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की पुत्री ऐश्वर्या रावत को टिकट के लिए अन्य दावेदारों से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ रही है। भाजपा के लिए यह उपचुनाव अहम है और पार्टी प्रत्याशी का निर्णय कर पाना कठिन। कई फैक्टर पर पार्टी के रणनीतिकार अपने दिमागी घोडे़ दौड़ा रहे हैं, लेकिन कोई राह फिलहाल तो नहीं निकल पाई है।
कई मायनों में केदारनाथ उपचुनाव अलग है। सहानुभूति फैक्टर के लिए पूरी गुंजाइश मौजूद है, लेकिन अन्य फैक्टर भी कम प्रभावशाली नहीं हैं। मसलन, गैरभाजपाई पृष्ठभूमि वाले दावेदारों की इस सीट पर टिकट के लिए असरदार मौजूदगी। भाजपा चुनाव में ऐसे तमाम लोगों को टिकट देती रही है, जो बाहरी रहे हैं, लेकिन जितना क्षेत्र में जनाधार मजबूत रहा हो। इसी केदारनाथ सीट पर भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में शैलारानी रावत को टिकट दिया था, जो कि कांग्रेस से भाजपा में आई थीं। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं। अब सवाल यह है कि इस सीट पर टिकट की दावेदारी जता रहे कर्नल अजय कोठियाल व कुलदीप रावत के साथ पार्टी क्या सुलूक करेगी। कर्नल अजय कोठियाल आप से भाजपा में आए हैं और केदारनाथ पुनर्निर्माण अभियान के नायक रहे हैं। वहीं, कुलदीप रावत ने इसी सीट पर वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव इस कदर दमदारी से लड़ा था कि भाजपा-कांगेस जैसे दलों के पसीने छूट गए थे। इस चुनाव में निर्दलीय बतौर मैदान में उतरे कुलदीप रावत दूसरे स्थान पर रहे थे। अब कुछ अपेक्षा के साथ भाजपाई बनने वाले कर्नल कोठियाल और कुलदीप रावत को लेकर भाजपा नेतृत्व क्या सोचता है, इसका नतीजा निकलने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगने वाला।
वैसे, सहानुभूति कार्ड का इस सीट पर भाजपा सिरे से नकारने की स्थिति में नहीं है, लेकिन यह जरूर है कि वह टिकट वितरण में सबसे अहम भूमिका निभाता हुआ नहीं दिख रहा है। पहले का इतिहास तो ये ही रहा है कि दिवंगत विधायक के परिजन को ही भाजपा टिकट देती रही है। स्वर्गीय हरबंस कपूर, धनीराम शाह, प्रकाश पंत, सुरेंद्र जीना से जुडे़ कई उदाहरण हमारे सामने हैं। टिकट का दावा कर रहीं दिवंगत विधायक की पुत्री ऐश्वर्या रावत की उम्मीद सहानुभूति कार्ड के अलावा इस बात पर भी टिकी है कि वह युवा भी हैं और महिला भी हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व दूसरी लाइन के नेताओं केा उभारते वक्त उसकी युवा व महिला पृष्ठभूमि का खास ख्याल रखता आया है। इन स्थितियों के बीच, कहीं आशा नौटियाल भी हैं, जो कि इस सीट से पूर्व में विधायक रह चुकी हैं और प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं। पिछले चुनाव में उनकी बगावत को छोड़ दें, तो उनकी पहचान खांटी भाजपाई की रही है। ऐसे में अपने पुराने कार्यकर्ता का भाजपा को टिकट बांटते हुए कितना ख्याल रहेगा, यह देखने वाली बात होगी। वर्तमान में तो उत्तराखंड भाजपा ने छह दावेदारों का नाम शार्ट लिस्ट करके केंद्रीय संसदीय दल के पास भेज दिया है। गेंद अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के पाले में हैं। किसके नाम पर दिल्ली की मुहर लगती है, इस पर सबकी निगाहें हैं।