लोकतंत्र के शुभ को आहत करने वाले अपराधी नेता

-ललित गर्ग-
विश्वास पर खरे उतरेंगे? इस तरह अपराधी तत्वों को महिमामंडित करने के बाद ममता के दावों एवं लम्बे संघर्षों की क्या विश्वसनीयता धूमिल नहीं हो जायेगी? केवल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शेख को छह साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा कर अपनी पार्टी की अपराध-छवि को ढक नहीं सकती।
आज जिस तरह से हमारा राष्ट्रीय जीवन और सोच विकृत हुए हैं, हमारी राजनीति स्वार्थी एवं संकीर्ण बनी है, हमारा व्यवहार झूठा हुआ है, चेहरों से ज्यादा नकाबें ओढ़ रखी हैं, उसने हमारे सभी मूल्यों को धराशायी कर दिया। राष्ट्र के करोड़ों निवासी देश के भविष्य को लेकर चिन्ता और ऊहापोह में हैं। वक्त आ गया है जब देश की संस्कृति, गौरवशाली विरासत को सुरक्षित रखने के लिए कुछ शिखर के व्यक्तियों को भागीरथी प्रयास करना होगा। दिशाशून्य हुए नेतृत्व वर्ग के सामने नया मापदण्ड रखना होगा। अगर किसी हत्या, अपहरण या अन्य संगीन अपराधों में कोई व्यक्ति आरोपी है तो उसे राजनीतिक बता कर संरक्षण देने की कोशिश या राजनीतिक लाभ उठाने की कुचेष्ठा पर विराम लगाना ही होगा। राजनीति का यह हश्र आम लोगों के लिए गौर करने काबिल हो सकता है। यदि ऐसे मुद्दे प. बंगाल में लोकसभा चुनावों के केन्द्र में रहेंगे तो इससे बड़ा मजाक बंगाली जनता के साथ दूसरा नहीं हो सकता है क्योंकि बंगाली जनता देश की आजादी के आन्दोलन से लेकर स्वतन्त्र भारत तक में राजनीति के प्रगतिशील चेहरे एवं आदर्शवादी की पहचान रही है। इस राज्य ने एक से बढ़कर एक क्रान्तिकारी व गांधीवादी दिये हैं। इन साफ-सुथरी एवं प्रेरक स्थितियों के बीच शाहजहां शेख जैसे नेताओं के कुकृत्यों एवं तृणमूल कांग्रेस की दुर्दशा पर रोया ही जा सकता है। होना तो यह चाहिए था कि जब शाहजहां शेख के खिलाफ गंभीर महिला उत्पीड़न आदि के आरोप लगे थे तो तभी राज्य पुलिस त्वरित कार्रवाई करके उसे कानून के सामने पेश करती। बेशक आरोप गलत भी हो सकते हैं मगर प्रवर्तन निदेशालय की टीम पर हमला करने के लिए लोगों को उकसाना कैसे सही ठहराया जा सकता है?
ममता सरकार और बंगाल पुलिस कुछ भी दावा करे, इसमें संदेह नहीं कि उसने आपराधिक चरित्र वाले शाहजहां शेख का बचाव करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। जब कोई सरकार किसी कुख्यात व्यक्ति का बचाव करने में हिचक दिखाने से भी इन्कार कर दे तो भला इसे राजनीतिक निर्लज्जता के अलावा और क्या कहा जा सकता है? ममता सरकार के रवैये को देखते हुए यह अनिवार्य हो गया था कि ईडी पर हमले के साथ संदेशखाली की अन्य शर्मनाक घटनाओं के आरोपी को सख्त से सख्त सजा मिले। इस तरह की आपराधिक राजनीति को प्रश्रय देने वाले तृणमूल कांग्रेस को भी उसकी जमीन दिखा देनी चाहिए। अपराधी तत्वों को संरक्षण एवं उच्च पदों पर स्थापित करना-ये गंभीर मसले हैं, जिन पर राजनीति में गहन बहस हो, राजनीति के शुद्धिकरण का सार्थक प्रयास हो, यह नया भारत -सशक्त भारत की प्राथमिकताएं होनी ही चाहिए।